Sunday, March 20, 2011

5. कृषि: भारत की विश्व को महान देन


कृषि: भारत की विश्व को महान देन


लैस्टर नाम के एक अंग्रेज़ ने भारत की कृषि व्यवस्था पर काफी शोध किया है. वो कहता है,
  "भारत में कृषि उत्पादन दुनिया में सर्वोच्च है."
                            ये बात वो आज(2010) से 150 साल पहले अंग्रेज़ों की संसद (British Parliament) में कह रहा है.वो कहता है कि,
" भारत में एक एकड़ भूमि में सामान्य रूप से 56 कुंतल धान पैदा होता है. ये उत्पादन औसत है. भारत में कुछ इलाके ऐसे हैं जहां 70-75 कुंतल धान पैदा होता है. कुछ ऐसे भी इलाके हैं जहां 45-50 कुंतल धान पैदा होता है. मैंने जब पूरे भारत का औसत निकाला तो 56 कुंतल प्रति एकड़ निकलता है."
अब ज़रा आज के भारत की अगर बात करें तो आज सबसे ज़्यादा यूरिया,डीएपी,सुपर फॉस्फेट अदि रसायनिक खाद डालने के बाद भी औसतन एक एकड़ में 30 कुंतल से ज़्यादा धान पैदा नहीं होता. वहीं आज से डेढ़ सौ साल पहले तक मात्र गाय के गोबर व गोमूत्र को डालकर औसतन 56 कुंतल प्रति एकड़ धान पैदा हो रहा है.

गन्ने के उत्पादन के बारे में भी अंग्रेज़ी संसद में आंकड़े उपलब्ध हैं. इन आंकड़ों के अनुसार भारत में उस समय सामान्य रूप से 120 मीट्रिक टन गन्ना 1 एकड़ में पैदा होता था. आज महंगी रसायनिक(कैमिकल)खाद के बोरे के बोरे खेत में डालने के बावजूद गन्ना 30-35 मीट्रिक टन प्रति एकड़ पैदा हो रहा है. आज महाराष्ट्र में एक इलाका है जिसे पश्चिमी महाराष्ट्र कहा जाता है. इसमें सांगली, सतारा, कोल्हापुर और पुणे के बीच का जो इलाका है वो आता है. बस यहीं गन्ने का उत्पादन पूरे भारत में सबसे ज़्यादा है.लेकिन यहाँ भी 80-90 मीट्रिक टन प्रति एकड़ से ज़्यादा उत्पादन नहीं हो पाता. बाकी भारत में तो 30-35 मीट्रिक टन से ज़्यादा उत्पादन नहीं है. वहीं आज से डेढ़ सौ साल पहले तक एक सौ बीस मीट्रिक टन का सामान्य उत्पादन बताया गया. ऐसी अदभुत खेती रही है भारतवासियों की.

आगे सुनिए, उस समय के अंग्रेज़ ये भी कह रहे हैं कि कपास का उत्पादन पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा भारत में है. इसके अलावा और एक खास बात जो अंग्रेज़ कह रहे हैं वो ये कि फ़सलों की विविधता सारी दुनियां में सबसे ज़्यादा भारत में ही है. 1822 तक धान की एक लाख(100000)से ज़्यादा प्रजातियां भारत में मौजूद थीं. आज(2010) भी धान की पचास हज़ार (50000) प्रजातियां मौजूद हैं.


भारतीयों द्वारा खेती के उपकरणों का निर्माण  
दुनिया का सबसे पहला हल भारत में बना. सारे विश्व को भारत ने ही हल बनाना और चलाना सिखाया. भारत ने ही सारी दुनिया को खेती करना सिखाया. ये भारत का सबसे बड़ा योगदान है सारी दुनिया को.
हल के अलावा खुरपी,बेलची,हंसिया,हथौड़ा,कुदाली,फावड़ा आदि ये सभी चीज़ें भारत ने ही विश्व को दी हैं. बीज को एक पंक्ति में बोने की जो परम्परा है वो हज़ारों साल पहले भारत में ही विकसित हुई है, दूसरे देशों में तो इसकी कभी कल्पना तक नहीं रही है. ऐसी अनेको चीज़ें भारत ने विश्व को सिखाई हैं.

अंग्रेज़ों ने भारत से कृषि सीखी.
सन् 1750 में इंग्लैंड से कुछ लोगों ने भारत में आकर खेती करना सीखा. यहाँ से वापस जाकर इंग्लैंड में उन्होनें कुछ प्रयोग किये और उसके बाद खेती का काम वहाँ थोड़ा-बहुत आगे बढ़ा. वर्ना उसके पहले उनके यहाँ अच्छी खेती के कोई रिकॉर्ड नहीं मिलते.


भारत से खेती सीखने से पहले अंग्रेज़ों का भोजन क्या था?
भारत से कृषि सीखने से पहले अंग्रेज़ मुख्यतः जंगलों में होने वाले उत्पादन और पशुओं को मारकर उनके मांस को खाकर जीवित रहते थे. वे हज़ारों साल यही सब खाकर इसी तरह जीवन गुज़ारते रहे. जब वे लोग केवल दो ही प्रकार की चीज़ें खा पाते थे उस समय भारत में खाने के लिए एक लाख किस्म के चावल उपलब्ध हुआ करते थे, तो बाकी चीज़ों की तो बात ही छोड दीजिए आप.
जब हमारी कृषि व्यवस्था ऐसी थी तो हम दुनिया में सबसे ज़्यादा उत्पादन करते रहे और सबसे ज़्यादा निर्यात(export) करते रहे. भारत ने लोहा या कपड़ा ही निर्यात नहीं किया, हमने हज़ारों सालों तक चावल,दालें,गुड़, और खाने-पीने की अनेकों चीज़ें हमने दुनियाँ को खिलाई हैं. चीनी तो मात्र सौ वर्ष पहले बनना शुरू हुई है उसके पहले तो गुड़ और गुड़िया शक्कर बनती थी जो हज़ारों साल भारत ने दुनियाँ को खिलाई है.

भारत में किसान बहुत वैभवशाली थे, उनपर धन की कोई कमी नहीं थी. भारत के किसान विश्व के बाजारों में अपना उत्पाद बेचते थे और दूसरे देश उनका सामान हाथों-हाथ खरीद लेते थे और इस तरह किसानों के पास काफी धन आया करता था. इसके अलावा कई उद्योगों को भी किसानों के उत्पाद ही चलाया करते थे जैसा कि आप जानते हैं कि भारत का कपड़ा पूरे विश्व में सबसे अच्छा था और खूब बिकता था, कपड़ा बनाने का कच्चा माल भी खेती से ही आता है, तो कुछ इस प्रकार खेती भारत में एक अच्छा व्यवसाय मानी जाती रही थी. किसानों को खेती में लागत भी ज़्यादा नहीं लगती थी, तब का किसान खुद ही अपनी खाद,बीज और कीटनाशक बना लेते थे, आज किसानों की अस्सी प्रतिशत आमदनी इन्हीं चीज़ों को महंगे दामों में कंपनियों से खरीदने में खर्च हो जाती है.

 [ दी गयी जानकारियाँ ब्रह्मलीन श्री राजीव दीक्षित जी की सालों की मेहनत से जुटाए गए और पूर्णतः प्रमाणित सबूतों के आधार पर आधारित हैं ] 
[ राजीव जी की सीडियों के लिए किसी भी पतंजली चिकित्सालय से संपर्क करें और भारत स्वाभिमान शंखनाद नाम से बीस सीडियों का पैकेट वहां आपको मिल जायेगा, इनमें बहुत सी ज़रूरी जानकारियाँ आपको अपने देश, इतिहास और राजनीति के बारे में पता चलेंगी].
        

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